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manzil mil jayegi shayari best new2017
- जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
- आँखों ने अभी मील का ~पत्थर नहीं देखा
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- #मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल, मगर
- लोग साथ आते गए और का~रवां बनता गया
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- #हम खुद तराशते हैं मंजिल~ के संग ए मील
- हम वो नहीं हैं जिन को ज़माना बना गया
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- #मंजिलें सब का मुकद्दर हों, यह ज़रूरी तो नहीं
- खो भी जाते हैं, नयी राहों पर~ चलने वाले
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- #पहुँचे जिस वक़्त मंज़िल~ पे तब ये जाना
- ज़िन्दगी रास्तों में बसर हो गई
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- #रफ़्ता-रफ़्ता मेरी जानिब, मंज़िल बढ़ती आती है,
- चुपके-चुपके मेरे हक़ में, कौ~न दुआएं करता है।
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- 3हूँ चल रहा उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल नहीं
- है जुस्तजू उस शख़्स ~की जो कभी हासिल नहीं
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- #नहीं निगाह मे मंज़ि~ल तो जुस्तजू ही सही
- नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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