रविवार, अप्रैल 16, 2017

बदन हर वक़्त जिस के लम्स-ए-खुशबू से

अब इस सादा कहानी को नया एक मोड़ देना था,
ज़रा सी बात पर अहद-ए-वफ़ा ही तोड़ देना था,
महकता था बदन हर वक़्त जिस के लम्स-ए-खुशबू से,
वही गुलदस्ता दहलीज़-ए-खिजाँ पर छोड़ देना था⧬⧬⧬⧬

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