दो लफ्ज़ लबों पर गुमसुम से बैठे थे

दो लफ्ज़ लबों पर गुमसुम से बैठे थे,
न वो कुछ कह सके न हम कुछ कह सके;
ज़ुबाँ भी आज ख़ामोश से बैठे थे,
न वो कुछ सुन सके न हम कुछ सुन सके↩↩↩

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