वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब मई 10, 2017 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता है; अभी महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है↵↵↵ टिप्पणियाँ
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