बुधवार, मई 10, 2017

वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब

वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब,
वही रोज का फ़साना लगता है;
अभी महीना भी नहीं गुजरा और
यह साल अभी से पुराना लगता है↵↵↵

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