रविवार, मई 07, 2017

एहसासों की अगर जुबाँ होती

एहसासों की अगर जुबाँ होती;
दुनियां फिर खूबसूरत कहाँ होती;
लफ़्ज़ बन जातें हैं पर्दे जज़्बात के;
अजी फिर कैसे ये मोहोब्बत बयाँ होती↶↶↶

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